


आजकल सांस से जुड़ी बीमारियां तेजी से बढ़रही हैं और इनमें सबसे ज्यादा चर्चा अस्थमा की होती है। खासकर बच्चों मेंयह बीमारी बड़ी परेशानी का कारण बन सकती है। अस्थमा दरअसल फेफड़ों की एकक्रॉनिक बीमारी है, जिसमें सांस की नलियों में सूजन और सिकुड़न आ जाती है। इसकी वजह बलगम बनता है और सांस लेने में कठिनाई, खांसी, सीने में जकड़न और घरघराहट जैसे लक्षण होते हैं।
शोध बताते हैं कि अस्थमा का सीधा संबंध हमारे वातावरण और जीवन शैली से है। बढ़ते प्रदूषण, धूल, धुआं, सिगरेट का धुआं और एलर्जी इसके बड़े कारण हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दुनिया में करीब 26 करोड़ लोग अस्थमा से पीड़ित हैं और हर साल लाखों नई केस सामने आते हैं। साल 2023 के आंकड़ों के अनुसार भारत में 3.5 करोड़ लोग अस्थमा से पीड़ित थे, जो इस रोग के वैश्विक मामलों का लगग 12.9% था।
अस्थमा का अभी कोई स्थाई इलाज नहीं है, लेकिन सही देखभाल और समय पर इलाज से इसे कंट्रोल किया जा सकता है। इसी से संबंधित एक अध्ययन में पाया गया है कि जिन लोगों के परिवार में पहले से किसी को अस्थमा रहा है उन्हें अपने खानपान को लेकर विशेष सावधानी बरतनी चाहिए।
बच्चों में अस्थमा का खतरा
भारत में एक लाख से अधिक बच्चों पर किए गए अध्ययन में शोधकर्ताओंने पाया कि अगर आपके परिवार में पहले से किसी को अस्थमा है तो बच्चों कोआइसक्रीम, दही, केले जैसे खाद्य पदार्थों से अस्थमा होने का खतरा बढ़ जाता है। अस्थमा के कारणों को समझने के लिए स्कूल आधारित नेशनल स्टडी में ये चौंकाने वाली बात सामने आई है। हालांकि पहले भी घर के लोग इस तरह की ठंडी तासीर वाली चीजों को खाने से रोकते थे, अब मेडिकल साइंस ने भी इसकी पुष्टि कर दी है।
पर्यावरणीय स्थितियों को लेकर भी बरतें सावधानी
स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, खान-पान में इस तरह की गड़बड़ी के अलावा पर्यावरण से संबंधित फैक्टर्स भी अस्थमा को ट्रिगर करने वाले हो सकते हैं। घरों में सीलन और फफूंदी, लकड़ी का धुंआ, मिट्टी का तेल और कोयला जैसे बायोमास ईंधन, मच्छर भगाने वाली कॉइल और यातायात से होने वाला प्रदूषण भी अस्थमा को ट्रिगर करने वाला हो सकता है। जिन लोगों को पहले से अस्थमा है या जिनमें इसका खतरा हो सकता है, ऐसे लोगों को इन कारकों से भी बचाव करते रहना चाहिए।